क्या आपने कभी ब्रह्मचर्य की अवधारणा के बारे में सुना है? यह एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है “ऊर्जा का सही उपयोग।” सरल शब्दों में, यह महत्वपूर्ण जीवन शक्ति के संरक्षण के अभ्यास को संदर्भित करता है।
Brahmacharya ka Palan kaise kare? ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें ?
ब्रह्मचर्य को अक्सर ब्रह्मचर्य से जोड़ा जाता है, लेकिन यह उससे भी आगे जाता है। यह आपकी ऊर्जा को उच्च उद्देश्यों और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाने के बारे में है। विकर्षणों और प्रलोभनों से बचकर, आप अपनी ऊर्जा को आत्म-सुधार और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने पर केंद्रित कर सकते हैं।
ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए, इन नियमों का पालन करें।
सुबह 3-3:30 बजे उठकर शौच के बाद स्नान करें,
इसके बाद प्राणायाम, नाम जप, और ध्यान करें।
शाम के समय भी शौच, स्नान, प्राणायाम, आसन, नाम जप, या मंत्र जप करें,
फिर ध्यान करें।
ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए, आंतरिक भावना होनी चाहिए, इसके लिए भगवान से मन-वचन-काया से ब्रह्मचर्य का पालन करने की शक्ति मांगनी चाहिए, मन को कंट्रोल करने के बजाय, उन कारणों को ढूंढना चाहिए, जिससे मन विषय-विकार में फंस जाता है, तुरंत ही वह लिंक तोड़ देना चाहिए।
ब्रह्मचर्य का पालन करने का अर्थ है कि मनुष्य का विवाह के बाद अपनी धर्मपत्नी के अलावा किसी और के प्रति आकर्षण नहीं होना चाहिए, वह पराई स्त्री को अपनी माता या बहन के रूप में ही देखे, यही गृहस्थ जीवन में ब्रह्मचर्य की साधना कहलाती है।
ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए, मानसिक तौर पर ब्रह्मचर्य का पालन करें। अपने मन को शुद्ध और पवित्र रखने के लिए समर्पित करें। अपने मन को शांत रखने के लिए ध्यान और प्रार्थना करें। आहार के विषय में संयम बनाएं। नवरात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए आपको शाकाहारी भोजन का सेवन करना चाहिए।
ब्रह्मचर्य योग के आधारभूत स्तंभों में से एक है, ब्रह्मचर्य का अर्थ है सात्विक जीवन बिताना, शुभ विचारों से अपने वीर्य का रक्षण करना, भगवान का ध्यान करना और विद्या ग्रहण करना।
अगर आप ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहते हैं तो याद रखें इसकी शुरुआत होती है एक संकल्प से। आपको एक संकल्प लेना होगा चाहे वह 30 दिन का हो या फिर 90 दिनों का, और उसे एक ही बार में पूरा करना होगा। एक रिसर्च के अनुसार लगभग 40 दिन के भोजन से लगभग 20 ग्राम वीर्य तैयार होता है और एक बार के हस्तमैथुन से या एक बार के वीर्य नाश से लगभग 15 ग्राम वीर्य निकल जाता है, तो यदि आप प्रतिदिन वीर्य का नाश कर रहे हैं तो आप समझ सकते हैं कि आप कितने दिनों के भोजन को बर्बाद कर रहे हैं, कितनी बड़ी शक्ति को खो दे रहे हैं।
ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए आपके पास सिर्फ एक दृढ़ संकल्प होना चाहिए एक जुनून होना चाहिए, कोई ऐसा टारगेट होना चाहिए जिसे करने में आपके मन में कोई अश्लील विचार ना आए केवल उसी काम के बारे में आपका पूरा ध्यान लगा रहे, जिससे आप अखंड ब्रह्मचर्य का पालन कर पाएंगे।
निरंतर उत्तेजना और त्वरित संतुष्टि से भरी आज की दुनिया में, ब्रह्मचर्य का पालन करना एक चुनौती हो सकता है। लेकिन आत्म-अनुशासन और सचेतनता विकसित करके, आप अधिक संतुलित और पूर्ण जीवन जीने के लिए इस अभ्यास की शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।
ब्रह्मचर्य का अभ्यास करके, आप बढ़े हुए फोकस, रचनात्मकता और आंतरिक शांति का अनुभव कर सकते हैं। यह आपके आवेगों पर काबू पाने और उस ऊर्जा को आपके व्यक्तिगत और आध्यात्मिक विकास की ओर पुनर्निर्देशित करने के बारे में है।
तो अगली बार जब आप अभिभूत या विचलित महसूस करें, तो ब्रह्मचर्य की शक्ति और आपके जीवन को बदलने की इसकी क्षमता को याद करें। इस प्राचीन प्रथा को अपनाएं और अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करें।
Brahmacharya ka Palan kaise kare? ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें ?
ब्रह्मचर्य उन लोगों को बहुत अजीब लगता है। जिन्हें संभोग शक्ति के बारे में बिलकुल भी कोई जानकारी नहीं है। वीरथ संभव शक्ति का ईंधन है और ब्रह्मचर्य को संत रहीम जी ने अपने दोहा में निम्न प्रकार से बताया हुआ है और इसका एक सुन्दर अर्थ है रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सुन पानी गए ना उभरे मोती मांश चुन इसका अर्थ है कृपया पानी बचा कर रखिए।बिना पानी के सब कुछ बेकार है, दोस्तों यहाँ छूने का मतलब है आटा आप पानी के बिना रोटी कैसे बना सकते हैं और मोती की चमक उसकी पहचान है दोस्तों, यहाँ सबसे दिलचस्प बात यह है कि महान आत्माओं के द्वारा मानव जीवन के लिए पानी के अर्थ को एक सुंदर तरीके से बताया गया है दोस्तों यहाँ पर पानी की तुलना वीर से की गई है और मनुष्य के शरीर में वीर सबसे महत्वपूर्ण तरल पदार्थ है।और महिला के शरीर में इसे रज कहा जाता है। वीर मानवी शरीर का सार द्रव है। इस प्रकार यदि हम इसकी रक्षा कर लेते है और इसे सही जगह पर उपयोग करते है तो हम भी ब्रह्मचर्य को सार्थक कर पाएंगे। ब्रह्मचर्य का महत्त्व क्या है और ब्रह्मचर्य क्यों आवश्यक है? दोस्तों जो इंसान विषय विकारों में लिप्त है वो बंधा हुआ है और जो व्यक्ति विषयों से इसे अलिप्त है वो मुक्त है।और जो व्यक्ति कामदेव के बाणों से व्यथित नहीं हुआ हो, वही महाशुर है। जो लोग अकाल मृत्यु से मरते हैं, वे लोग मोक्ष के अधिकारी नहीं आते हैं। इसीलिए अकाल मृत्यु से बचने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना बहुत आवश्यक है।
तो चलिए अब हम आपको बताते हैं ब्रह्मचर्य पर महापुरुषों के विचार। पहला विचार।मनुष्य बिना ब्रह्मचर्य धारण किये हुए कदापि पूर्ण आयु वाले नहीं हो सकते। रघुवेद जी ने कहा था दूसरा विचार ब्रह्मचर्य से मनुष्य दिव्यता को प्राप्त होता है और शरीर के त्यागने पर सिद्ध मिलती है। मुनिन्द्र गर्ग ने कहा था ब्रह्मचर्य के संरक्षण से ही मनुष्य को सब लोगों में सुख देने वाली सिद्धियां प्राप्त होती है।मुनिराज अत्री ने कहा था ब्रह्मचर्य से ही ब्रह्मा ज्ञान प्राप्त करने की योग्यता प्राप्त होती है। पिपलाद जी ने कहा था ब्रह्मचर्य और अहिंसा शारीरिक तप है। योगीराज कृष्ण ने कहा था ब्रह्मचर्य के पालन से आत्मबल प्राप्त होता है। पतंजलि ने कहा था ब्रह्माचर्य व्रत धारण करने वालों को मोक्ष मिलता है। चलत सुजात मुनि ने कहा था जो मनुष्य ब्रह्मचारी नहीं उसको कभी सिद्ध नहीं होती।वह जन्म मरणाधि क्लेशों को बार बार भोगता रहता है। अमृत सिद्ध जी ने कहा था। तो चलिए जानते हैं युवा अवस्था में ब्रह्मचर्य की उपयोगिता क्या है? दोस्तों ब्रह्मचर्य वर्णाश्रम का पहला आश्रम है, जिसके अनुसार यह एक से 25 वर्ष तक की आयु का होता है और इस आश्रम का पालन करते हुए विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिए शिक्षा ग्रहण करनी होती है।जैसा की ऊपर बताया गया है की ब्रह्म का अर्थ ज्ञान भी है। अर्थ ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य अर्थात ज्ञान प्राप्ति के लिए जीवन बिताना चाहिए। विद्यार्थी के लिए ज्ञान ही ब्रह्म तुल्य है। पूर्ण तन्मयता से ज्ञान की प्राप्ति करना ही उसका मुख्य उद्देश्य होता है। उसे ब्रह्म चिंतन के साथ पूर्ण लगन से अपने ज्ञान का अर्जुन करना होता है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से उसकी बुद्धि तीव्र होती है।उसकी स्मरण शक्ति तीव्र होती है, चेहरे पर ओझ तेज होता है, जैसा कि विवेकानंद जी ने कहा है कि केवल 12 वर्ष तक अखंड ब्रह्मचर्य से अधूरा शक्ति प्राप्त होती है। तो चलिए जानते हैं ब्रह्मचर्य के नियम क्या है? ब्रह्मचारी को स्त्रियों के रूप लावण्य का ध्यान नहीं करना चाहिए तथा उसके गुण, स्वरूप और सुख का भी वर्णन नहीं करना चाहिए।और उनसे दूर रहना चाहिए। उनके साथ कोई खेल आदि नहीं खेलना चाहिए। उनकी और काम दृष्टि से बार बार नहीं देखना चाहिए। अगर नजर जाए तो उसे हटा लेनी चाहिए। एकांत में किसी स्त्री के साथ नहीं रहना चाहिए। उनके मोह जाल से दूर रहना चाहिए। दोस्तों एक शब्द में यह के अपने उद्देश्य परमानंद की प्राप्ति को पल पल ध्यान में रखते हुए विषय विकार से दूर रहने के अभ्यास को प्रगाढ़ करना चाहिए।
Brahmacharya ka Palan kaise kare? ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें ?
ब्रह्मचर्य का अर्थ अपने खान पान पर भी नियंत्रण करना है। ब्रह्मचारीमौ से अत्यधिक खट्टे या नमकीन भोजन से और बहुत मसालेदार भोजन से संयम रखते हैं।गाँधी जी जो की एक जाने माने ब्रह्मचारी भी थे, जिन्होंने अपने पूरे जीवन भर सादा ही भोजन किया ब्रह्मचार्य पर स्वामी विवेकानंद के विचार क्या थे चलिए जानते हैं। ब्रह्मचर्य विषय पर स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि ईश्वर को पाने के एक मात्र लक्ष्य के साथ मैंने स्वयं 12 वर्ष तक अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया है।उससे मानो की एक पर्दा सा मेरे मस्तिष्क से हट गया है। इसीलिए मुझे अब दर्शन जैसे सूक्ष्म विषय पर भाषण देने के लिए भी ज्यादा तैयारी करनी नहीं पड़ती। मान लो कि मुझे कल व्याख्यान देना है, जो भी मुझे बोलना होगा वह मेरी आँखों के सामने कई चित्रों की तरह आज रात को गुजर जाता है और अगले दिन वही सब जो मैंने देखा था उसी में शब्दों में व्यक्त कर देता हूँ। जो कोई भी 12 वर्ष के लिए अखंड भ्रम चर्या का पालन करेगा।वह निश्चित रूप से इस शक्ति को पाएगा। दोस्तों, इस शक्ति को फोटोग्राफिक मेमॅरि भी कहा जाता है। इसे हासिल करने के लिए एक इंसान को स्वामी जी की तरह 12 साल तक अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। दोस्तों यदि यज्ञ वेदों के कर्मकांड का आधार है तो निश्चित रूप से ब्रह्मचर्य ज्ञान कांड का आधार है संस्कृत का शब्द।जारी है वह जिसका उसके काम वासना पर पूरा नियंत्रण है। जीवन का हमारा लक्ष्य मोक्ष है और वह ब्रह्मचर्य के पालन के बिना पूर्ण कैसे पाया जा सकता है? दोस्तों, एक बार एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका का सेट देख कर उनके शिष्य ने कहा, इन सारी किताबों को एक जीवन में पढ़ना लगभग असंभव है। स्वामी पहले ही 10 खंठ समाप्त कर चूके थे।अतः स्वामी जी ने कहा कि इन 10 खंडों में से जो प्रश्न पूछ लो और मैं तुम्हें सभी का सही सही उत्तर दूंगा। स्वामी जी ने सिर्फ भाव को यथावथू बताया बल्कि हर खंड से चुने गए कठिन विषयों की मूल भाषा तक कई स्थानों पर दोहरा दी। उसके बाद शिष्य स्तब्ध हो गया और उसने किताबे एक तरफ रख दी। यह कहते हुए कि यह मनुष्य की शक्ति के अंदर नहीं है।
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