धार्मिक कथा – पत्नी अपने पति को धोखा कब देती है ? मोर मोरनी की कहानी ।

इस दुनिया में हमारे जीवन पर असर डालने वाली और हमारी सोच को बदलने वाली कई कहानियाँ हैं। ऐसी ही एक कहानी मोर और मोरनी के संवाद पर आधारित है, जो समाज और व्यक्तिगत जीवन में गहरे सत्य को उजागर करती है। इस कहानी में न केवल प्रेम और विश्वास की बात होती है, बल्कि इसमें स्त्री और पुरुष के स्वभाव और उनके आचरण को लेकर एक गहन संदेश छिपा है। इस कथा के माध्यम से यह समझने का प्रयास किया गया है कि मानव स्वभाव में धोखा देने का तत्व किस प्रकार विद्यमान होता है और यह किस स्थिति में उभरता है।

यह कहानी एक घने जंगल में स्थित एक विशाल वटवृक्ष के नीचे रहने वाले मोर और मोरनी के जोड़े से शुरू होती है। यह जोड़ा अपने प्रेम के लिए बहुत प्रसिद्ध था। उनके प्रेम की मिसाल दूर-दूर तक दी जाती थी। उनके बीच का संबंध इतना गहरा था कि अन्य मोर और मोरनियों के बीच भी उनकी चर्चा होती रहती थी। Dharmik katha

Dharmik katha

मोर और मोरनी दोनों एक-दूसरे के प्रति समर्पित थे। उनके बीच असीम प्रेम था, और वे हमेशा एक-दूसरे का ख्याल रखते थे। उनके प्रेम की गहराई और निष्ठा ने उन्हें जंगल के अन्य जीवों के बीच एक विशेष स्थान दिलाया था। लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, प्रेम के साथ-साथ कभी-कभी छोटे-मोटे विवाद भी होते हैं। एक दिन ऐसा ही कुछ हुआ, जब उनके बीच किसी बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया।

विषय पर नहीं थी। यह बहस जीवन के एक महत्वपूर्ण प्रश्न पर आधारित थी—क्या स्त्री सबसे बड़ा धोखा देती है? मोर का मानना था कि स्त्री स्वभाव से धोखा देने वाली होती है, जबकि मोरनी इस बात को सिरे से नकार रही थी। मोर ने इस विषय पर अपनी राय रखते हुए कहा, “मैं जानता हूँ कि स्त्री कब और कहाँ सबसे बड़ा धोखा देती है।”

मोरनी ने यह सुनकर कहा, “यह कैसे संभव है? स्त्री कभी धोखा नहीं देती। वह तो प्रेम और समर्पण की मूर्ति होती है।” मोर ने तर्क किया, “तुम्हारी यह धारणा गलत है। स्त्री सबसे बड़ा धोखा देती है, और मैं यह साबित करके दिखाऊँगा।” इस प्रकार उनके बीच विवाद और बढ़ गया।

मोर और मोरनी के बीच की यह बहस इतनी बढ़ गई कि दोनों अपने तर्कों पर अड़े रहे।

कोई भी एक-दूसरे की बात मानने को तैयार नहीं था। इस विवाद का समाधान खोजने में असमर्थ, वे दोनों विचारमग्न हो गए। उसी समय वटवृक्ष पर बैठा एक हंस उनके पास आया। हंस बहुत ज्ञानी और समझदार था। उसने मोर और मोरनी की बहस सुनी और समझा कि यह कोई साधारण विवाद नहीं है।

हंस ने कहा, “मैं देख रहा हूँ कि तुम दोनों इस समस्या का हल नहीं निकाल पा रहे हो। क्यों ना तुम कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती से इस प्रश्न का उत्तर पूछ लो? वे ही तुम्हें इस प्रश्न का सही उत्तर दे सकते हैं।” हंस की यह सलाह मोर और मोरनी को उचित लगी। उन्हें यह विश्वास था कि भगवान शिव और माता पार्वती के पास इस प्रश्न का सही उत्तर होगा।

हंस की सलाह मानकर मोर और मोरनी ने कैलाश पर्वत की यात्रा का निर्णय लिया। यह यात्रा कठिन थी, लेकिन उनके मन में अपने सवाल का जवाब पाने की तीव्र इच्छा थी। कैलाश पर्वत पहुँचने के बाद वे भगवान शिव के चरणों में गिर गए और उन्हें प्रणाम किया। भगवान शिव ने उनकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “बताओ, तुम्हारी समस्या क्या है?”

मोरनी ने पहले बोलते हुए कहा, “हे प्रभु, यह मोर कह रहा है कि संसार में स्त्री सबसे बड़ा धोखा देती है। कृपया हमें बताएं कि क्या यह सत्य है।” भगवान शिव ने मोर की ओर देखा और उससे पूछा, “तुम यह बात कैसे साबित कर सकते हो?” मोर ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैं आपको एक कहानी सुनाऊँगा जिससे यह साबित हो जाएगा कि स्त्री सबसे बड़ा धोखा कब और कहाँ देती है।”

भगवान शिव ने कहा, “ठीक है, तुम अपनी कहानी सुनाओ।” उसी समय माता पार्वती भी वहाँ आ गईं और उन्होंने कहा, “मैं भी यह कहानी सुनना चाहती हूँ। मुझे भी यह जानना है कि क्या सच में स्त्री धोखा देती है।” मोर ने अपनी कहानी इस प्रकार शुरू की।

“बहुत समय पहले एक राज्य था जिसका राजा उग्रसेन नाम का एक प्रतापी शासक था। उसके चार पुत्र थे, और सभी पुत्र बहादुर और प्रतापी थे। लेकिन उसका सबसे बड़ा पुत्र, जिसका नाम विश्वजीत था, न केवल प्रतापी था बल्कि बहुत सुंदर भी था। विश्वजीत की पत्नी रत्नावती थी, जो रूपवान और गुणवान थी। वह अपने पति से बहुत प्रेम करती थी और उसके प्रति पूरी तरह समर्पित थी।”

“एक दिन राजा उग्रसेन ने किसी कारणवश अपने सबसे बड़े बेटे विश्वजीत को राज्य से निष्कासित कर दिया। यह सुनकर विश्वजीत बहुत उदास हो गया। उसने सोचा कि अब उसके पास कुछ भी नहीं बचा है। वह अपने महल में जाकर हताश होकर बैठ गया। जब उसकी पत्नी रत्नावती को यह पता चला, तो उसने उससे पूछा, ‘हे स्वामी, आप इतने उदास क्यों हैं? क्या हुआ है?’ विश्वजीत ने उसे सारी बात बताई। यह सुनकर रत्नावती को गहरा सदमा लगा, और वह बेहोश हो गई।”

“जब उसे होश आया, तो उसने कहा, ‘स्वामी, आप जहाँ जाएंगे मैं भी आपके साथ चलूंगी।’ विश्वजीत ने उसे समझाने की कोशिश की कि जंगल में जीना आसान नहीं है, लेकिन रत्नावती ने अपनी जिद्द पर अड़ी रही कि वह उसके साथ ही जाएगी। वह अपने पति के साथ हर कठिनाई का सामना करने के लिए तैयार थी।”

“अगले दिन सुबह, वे दोनों राज्य से निकलकर एक घने जंगल में पहुँच गए। जंगल का वातावरण बहुत कठिन और दुर्गम था। वहाँ की विषम परिस्थितियों में जीना बहुत मुश्किल था। चलते-चलते वे दोनों बहुत थक गए और एक वटवृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे। जंगल की थकान ने उन्हें इतनी गहरी नींद में डाल दिया कि वे पूरी तरह से बेखबर हो गए।”

“लेकिन उनकी यह शांति अधिक समय तक नहीं रही। कुछ समय बाद, एक जहरीला सर्प वहाँ आया और उसने रत्नावती को डस लिया। सर्प का विष इतना घातक था कि रत्नावती की मृत्यु हो गई। जब विश्वजीत ने अपनी पत्नी को मृत पाया, तो वह अत्यंत दुखी हो गया और विलाप करने लगा। उसका ह्रदय टूट गया था, और वह समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या करे।”

“उसी समय, वहाँ से एक दिव्य संत गुजर रहे थे। संत ने विश्वजीत के रोने की आवाज सुनी और वे उसके पास आ गए। संत ने विश्वजीत से पूछा, ‘पुत्र, तुम क्यों रो रहे हो?’ विश्वजीत ने संत को सारी बात बताई। संत ने कहा, ‘पुत्र, यह संसार का नियम है कि जो भी इस दुनिया में आता है, उसे एक दिन जाना ही होता है। मृत्यु से कोई नहीं बच सकता।’ लेकिन विश्वजीत ने कहा, ‘महात्मा, मेरी पत्नी बहुत चरित्रवान और पतिव्रता थी। मैं उसके बिना नहीं रह सकता।'”

“संत ने कहा, ‘यदि तुम अपनी आधी आयु अपनी पत्नी को दे दो, तो वह जीवित हो जाएगी।’ विश्वजीत ने बिना किसी हिचक के अपनी आधी आयु दान कर दी। संत ने अपनी दिव्य शक्तियों का उपयोग किया और रत्नावती जीवित हो गई।

लेकिन संत ने एक शर्त रखी, ‘तुम इस बात को कभी अपनी पत्नी से मत कहना, अन्यथा वह फिर से मर जाएगी।’ विश्वजीत ने इस शर्त को मान लिया और अपनी पत्नी के साथ राज्य की ओर चल पड़ा।”

“वापसी के रास्ते में, जब वे एक नदी के किनारे रुके, तो रत्नावती ने अपने पति से पूछा, ‘हे स्वामी, आप इतने उदास क्यों लग रहे हैं? क्या आपके मन में कोई चिंता है?’ विश्वजीत पहले तो शांत रहा, लेकिन रत्नावती की बार-बार पूछने पर उसने वह बात कह दी जो उसे नहीं कहनी चाहिए थी। उसने अपनी पत्नी को बताया कि उसने अपनी आधी आयु उसे दी है ताकि वह जीवित रह सके। यह सुनते ही रत्नावती ने कहा, ‘आपने यह क्या किया? आप मुझे बिना बताए इतना बड़ा बलिदान कैसे दे सकते हैं?'”

“जैसे ही रत्नावती ने यह सत्य सुना, वह स्तब्ध रह गई। वह उस समय अपने आप को संभाल नहीं पाई और संत की शर्त के अनुसार फिर से मर गई।”

मोर ने अपनी कहानी समाप्त करते हुए कहा, “हे प्रभु, यही वह समय था जब स्त्री ने सबसे बड़ा धोखा दिया। उसने अपने स्वार्थ और भावुकता के कारण अपने पति की दी हुई आयु का महत्व नहीं समझा और उसकी बात सुनते ही फिर से मर गई। इस प्रकार, उसने अपने पति को फिर से दुखी और अकेला छोड़ दिया। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि स्त्री स्वभाव से धोखा देने वाली होती है।”

भगवान शिव ने मोर की कहानी सुनने के बाद कहा, “मोर, तुम्हारी कहानी में जो घटना घटी, वह वास्तव में दुखद है। लेकिन यह कहना कि पूरी स्त्री जाति धोखा देने वाली है, यह उचित नहीं है।

तुम्हारी कहानी में दिखाया गया है कि परिस्थितियाँ किस प्रकार व्यक्ति को ऐसा आचरण करने पर मजबूर कर देती हैं जो कि सामान्यतः वह नहीं करता।”

भगवान शिव ने आगे कहा, “धोखा देना किसी एक लिंग का स्वभाव नहीं है। यह परिस्थितियों और मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है। जब व्यक्ति किसी कठिन परिस्थिति में फँस जाता है, तब उसका मन विचलित हो सकता है और वह कुछ ऐसा कर सकता है जो सामान्यतः नहीं करता। स्त्री और पुरुष दोनों ही समान रूप से धोखा दे सकते हैं, लेकिन यह स्वाभाविक नहीं है। यह एक विशेष स्थिति में उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रिया है।”

माता पार्वती ने भी मोर की कहानी सुनी और कहा, “मोर, तुमने जो कहानी सुनाई, उसमें दुखद घटना घटित हुई, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि स्त्री धोखा देने वाली होती है। हर स्त्री या पुरुष के मन में समर्पण, प्रेम, और निष्ठा का भाव होता है। जब कोई व्यक्ति स्वार्थ या भय में फँसता है, तो वह गलत निर्णय ले सकता है। लेकिन यह धोखा देने की मंशा नहीं होती।”

उन्होंने आगे कहा, “स्त्री और पुरुष दोनों ही इस सृष्टि के महत्वपूर्ण अंग हैं। दोनों का अस्तित्व एक-दूसरे के बिना अधूरा है। किसी एक को दोष देना उचित नहीं है। जीवन का सबसे बड़ा सत्य यही है कि हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए और किसी भी स्थिति में धैर्य और समझदारी से काम लेना चाहिए। सच्चाई और ईमानदारी ही जीवन में सबसे महत्वपूर्ण हैं।”

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में सच्चाई, ईमानदारी, और विश्वास का कितना महत्व है। जब हम किसी भी परिस्थिति में इन मूल्यों को अपनाते हैं, तो हम सही दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। मोर और मोरनी के बीच के इस संवाद ने यह स्पष्ट किया कि धोखा देने का स्वभाव किसी एक लिंग का नहीं होता, बल्कि यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

हमें जीवन में किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करते समय धैर्य और समझदारी से काम लेना चाहिए। एक-दूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान का भाव रखना चाहिए। यही जीवन का सबसे बड़ा सत्य है।

कहानी के अंत में, मोर और मोरनी ने इस सत्य को स्वीकार कर लिया और भगवान शिव और माता पार्वती को धन्यवाद दिया। उन्होंने यह समझा कि किसी एक को दोष देना सही नहीं है। जीवन में प्रेम, समर्पण, और विश्वास ही सबसे महत्वपूर्ण हैं, और इन्हीं के आधार पर जीवन को जीना चाहिए।

इस प्रकार, यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन के हर मोड़ पर हमें सच्चाई और ईमानदारी का पालन करना चाहिए। यही जीवन की सच्ची दिशा है, और यही हमें जीवन में सफल और सुखी बनाती है।

Dharmik katha

इस कहानी को भी अवश्य पढ़ें – ( कथा पुराण )